Saturday 23 February 2013

स्त्री-उत्पीड़न के खिलाफ़ ‘फ़ास्ट ट्रैक कोर्टस्’ की तेज़ पहलकदमी - सारदा बनर्जी




स्त्रियों के खिलाफ़ यौन-अपराध के मुकदमों को लेकर दिल्ली में छह फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट गठित हुए। 4 जनवरी को छह न्यायिक पदाधिकारियों ने इन अदालतों की ज़िम्मेदारी ली। हालिया शोध के मुताबिक कुल 1031 मुकदमें जो छह ज़िला-अदालतों में लंबित थे, उनमें से 500 मुकदमों को फ़ास्ट ट्रैक अदालत में स्थानांतरण किया गया। इन 500 में 27 मुकदमों का अब तक मिली खबर के मुताबिक निपटारा हो चुका है। 27 मामलों में 12 मामलों के दोषियों को सज़ा सुनाया गया, एक को मौत की सज़ा हुई बाकि 15 मामलों में आरोपी निर्दोष साबित हुए, उन्हें रिहा कर दिया गया। यानी ये फ़स्ट ट्रैक कोर्ट कारगर रुप में काम कर रहे हैं। लेकिन बलात्कार और स्त्री-उत्पीड़न के मामलों को लेकर इस तरह के अदालत हर एक राज्य में होना ज़रुरी है जिससे निलंबित पड़े मुकादमों का निपटारा जल्द हो सके। पीड़िता को जल्द न्याय उपलब्ध हो सके। जनवरी में ममता सरकार ने पश्चिम बंगाल में न्याय प्रक्रिया में तेज़ी के लिए 88 फास्ट ट्रैक अदालत बनाने का प्रस्ताव रखा है जो बिना शक एक सराहनीय कदम है। इस तरह के अदालत पश्चिम बंगाल के हर ज़िले में होने चाहिए जिससे कि पीड़ितों को जल्द फैसलें मिले। इसकी कार्यशीलता के लिए ज़रुरी है कि ऐसे प्रस्ताव जल्द पास हो और ऐसे अदालत तुरंत शक्ल में आए।
लेकिन यहां मूल समस्या फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट गठित करने का नहीं है। कई बार देखा जाता है कि मुकदमें फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट में तो सुलझ जाते हैं लेकिन हाइकोर्ट में कई साल तक लंबित पड़े रहते हैं। पीड़ित लोग कोर्ट का चक्कर लगाते लगाते थक जाते हैं, वकीलों की मोटी रकम भरते भरते पैसा बर्बाद होता है लेकिन मुकदमा नहीं निपटता। इसलिए फास्ट ट्रैक कोर्ट सक्रिय हो इसके लिए बेहद ज़रुरी है ज़मीनी स्तर पर सुधार। पुलिस कारगर भूमिका निभाए, अपना काम ठीक से करें, आरोपपत्र पेश करने में देर न करें, उसे वक्त पर दें। पुलिस थाने प्रगतिशील भूमिका अदा करें। साथ ही हर थाने में पुलिस बलों की संख्या बढ़ाई जाए क्योंकि आबादी के लिहाज़ से मौज़ूदा समय में पुलिस बल काफ़ी कम है। व्यवस्था की मज़बूती के लिए यह बेहद ज़रुरी है कि पुलिस थाने सक्रिय हो। पुलिस को सुविधाएं मुहैया कराई जाए। उनके पास कम्प्यूटर की व्यवस्था उपलब्ध हो। इसके अतिरिक्त स्थानीय गुंडों और बदमाशों की सूची पुलिस के पास हो जिससे काम करते समय अपराधियों को ढूंढ़ने में मदद मिल सके। मूलतः ज़मीनी स्तर पर सुधार के अदालती कामकाज बेहतर ढंग से नहीं चल सकता।
इसके अलावा पश्चिम बंगाल के हर ज़िले में स्त्री-उत्पीड़न के खिलाफ़ केंद्रीकृत स्त्री-कक्ष या निगरानी-कक्ष बनाया जाए जिससे किसी भी मामले में जल्द कदम उठा सके। कॉलेज और विश्वविद्यालयों में भी स्त्री-उत्पीड़न के खिलाफ़ ‘वोमेन-सेल’ बनाया जाए, कमिटियां गठित की जाए जिससे स्त्रियों के साथ यदि गलत बर्ताव हो रहा है या छेड़खानी की घटना हो रही है तो उसकी शिकायत तुरंत दर्ज हो सके। यानी कि स्त्रियों के पास सुविधा हो कि वे उचित समय पर गलत कदम को रोक सकें या सटीक फैसले ले पाएं।
दिल्ली में स्त्रियों की सुविधा के लिए सीधे फ़ोन कर शिकायत दर्ज करने की सुविधा उपलब्ध हुई है। दिल्ली सामूहिक बलात्कार पीड़िता के साथ हुए नृसंश वारदात के बाद से ये सीधे फ़ोन की सुविधा स्त्रियों को दी गई है। इसके तहत 181 नंबर लगाकर  स्त्रियां अपने साथ होने वाले छेड़छाड़, उत्पीड़न को रोकने के लिए मदद मांग सकती हैं। इस हेल्पलाइन का संबंध दिल्ली में मुख्यमंत्री के कार्यालय से लेकर विभिन्न 185 पुलिस थानों तक किया गया है। कायदे से पश्चिम बंगाल में भी स्त्रियों के लिए इस तरह का कोई वोमेन हेल्पलाइन नंबर उपलब्ध होना चाहिए जिसमें ज़ुल्मी के खिलाफ़ थानों में सीधे त्वरित गति से शिकायत दर्ज हो। इस नंबर का संबंध मुख्यमंत्री के दफ़्तर से लेकर विभिन्न स्थानीय थानों से भी हो। इससे भी ज़रुरी है कि ये नंबर सही रुप में कार्य करे जिससे स्त्रियों को त्वरित सुविधा मिल सके। देखा जाए तो यह सुविधा हर एक राज्य में होना ज़रुरी है। पूरे भारत में राज्य के स्तर पर स्त्रियों के लिए वोमेन हेल्पलाइन नंबर की व्यवस्था स्त्री-सुरक्षा में एक बढ़िया कदम होगा।
फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट अभी तक जहां जहां गठित हुए हैं वहां उसकी संख्या में बढ़ोतरी की जाए और देश के हर राज्य और हर ज़िलें में इसकी अवस्थिति हो। केवल स्त्री संबंधी केसेस ही नहीं ऐसे केसेस जो काफ़ी साल से लंबित पड़ा हुआ है और अग्रिम न्याय की मांग करता है उन्हें भी इन अदालतों में स्थानांतरित किया जाए। न्यायिक स्तर पर स्त्री-सुरक्षा में बढ़ोतरी के लिए ये कुछ खास उपाय करना देश के लिए बेशक ज़रुरी है।

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