इस
दौरान कमसंख्यक छात्र-छात्राएं होते हैं जो व्यक्तिगत श्रमसाध्य कोशिश के तहत लाइब्रेरी
की ख़ाक छानकर पढ़ते हैं,हर रोज़ कक्षा में जाते हैं और खुद की मेहनत से लिखे लेख
के आधार पर परीक्षा की तैयारी कर परीक्षा देते हैं।बाकि छात्र-छात्राएं इस कोशिश
में रहते हैं कि किसी तरह पढ़ाई की लड़ाई में तेज़-तर्रार और आगे रहने वाले
सीनियरों से पाठ्यक्रम में पढ़ाए जाने वाले विषयों पर नोट्स उपलब्ध हो जाए। इस
दौरान ये छात्र-छात्राएं अपनी सारी महनत सीनियरों की चाटुकारिता या पैरोकारी में
गुज़ारते हैं।बाकि समय मौज-मस्ती में व्यतीत करने में लगे रहते हैं।कक्षा में भी
ये गैर-हाजिरी लिस्ट में अपना नाम दर्ज कराते हैं।
इसी प्रकार आगे चलकर
विभिन्न प्रतियोगितामूलक परीक्षाओं जैसे नेट, सेट और एस.एस.सी. में भी ये महान
विद्यार्थी व्यक्तिगत श्रम-अर्जित पढ़ाई न कर विभिन्न जगहों से जुगाड़े नोट्स को तोते
की तरह रटकर यानी रटंत पद्धति से परीक्षा में उत्तीर्ण होने की जी-तोड़ कोशिश में
लगे रहते हैं।इस दौरान भी इन्हें किसी भी तरह के पुस्तकालयों में पढ़ते न देखा
जाता है और न किताब खरीदते।फलतः गहरे ज्ञान के अभाववश परीक्षा हॉल में भी विभिन्न
तरह की गलत हरकतों मसलन् कानाफूसी कर उत्तर जानना, इशारों से दूसरों तक उत्तर पहुँचाना,
उत्तर के लिए चीट इत्यादि की सहायता लेना आदि में ये पारदर्शी नज़र आते हैं।दिलचस्प
बात यह है कि इन हरकतों के बावजूद भी अगर ये परीक्षा में उत्तीर्ण नहीं होते तो
शिक्षकों पर या कॉपी जांचने वालों पर सारा दोष मढ़ देते हैं और जिस विद्यार्थी को
सफलता मिलती है उसके बारे में गलत अफवाह फैलाने में लगे रहते हैं।कायदे से इस तरह
की हरकतें बंद होनी चाहिए।
यह समस्या प्रायः हर
विषय की है चाहे वह कला का विद्यार्थी हो, विज्ञान का, वाणिज्य का या किसी और विषय
का।किंतु खास तौर पर साहित्य के क्षेत्र में यह समस्या ज़्यादातर नज़र आ रहा है जहां
इस तरह की विद्यार्थियों के सुंदर नमूने हैं।इन विद्यार्थियों का सीधा तर्क है – गहन
अध्ययन की क्या ज़रुरत है, बने-बनाए नोट्स पढ़ो और पास करो। इससे दो चीज़ साफ होती
है --- एक, विद्यार्थियों में अध्ययन करने यानी मेहनत करके पढ़ाई करने की
प्रवृत्ति का लोप हो रहा है और दूसरा, ज्ञान अर्जित करने की इच्छा का व्यापक तौर
पर अभाव दिखाई दे रहा है। नौकरी की हुड़दंग में लगे ये विद्यार्थी किसी भी विषय से
संबंधित अधकचरी जानकारी रखते हैं। डिग्री हासिल कर अपने को शिक्षित समझ अपनी अधूरी
जानकारी के आधार पर पढ़ने वाले विद्यार्थियों से तर्क करते हैं। कम ज्ञान के
बावजूद इनके व्यवहार में विद्वतापूर्ण अचरण भी गौरतलब है।
किंतु यह चिंता की बात है कि
यदि इस तरह की रटी-रटंत या नौकरी-आधारित पढ़ाई क्रमशः प्रचलन में आता जाएगा तो आने
वाली नई पीढ़ी भी इन पूर्वजों से दीक्षा लेकर इसी ओर मुखातिब होगी। फलतः शिक्षा के
स्तर में भयानक गिरावट आएगी। शिक्षा के स्तर और मूल्य में इस गिरावट का नतीजा यह
होगा कि शिक्षक, डॉक्टर, इंजीनियर से लेकर विभिन्न सरकारी और गैर-सरकारी पदों पर आसीन
व्यक्तियों के ज्ञान स्तर के अभाव का हमें हर पग पर सामना करना होगा। फलतः देश में
शिक्षित अज्ञानी की संख्या में भी इज़ाफा होगा जो हर हाल में ग्रहण योग्य नहीं हो
सकता। इस अज्ञान की वजह से ही आज शिक्षित होने के बावजूद युवा-वर्ग की मानसिकता
में बदलाव नज़र नहीं आ रहा। शिक्षित होकर भी वे भयंकर पिछड़े और संकुचित मानसिकता
के शिकार नज़र आते हैं। इसमें कोई दोराय नहीं है कि व्यक्ति को तराशने में शिक्षा
की बहुत बड़ी भूमिका होती है। बेहतर शिक्षा के फलस्वरुप एक बेहतर इंसान का निर्माण
होता है। किंतु यदि शिक्षा डिग्री के कारण ली जा रही है और हमें अधजल गगरी भेंट कर
रही है तो ऐसी शिक्षा का कोई मूल्य नहीं है। इस तरह की शिक्षा से व्यक्ति में
अवसरवादिता, चाटुकारिता जैसी बीमारियां घर कर जाती है और आगे चलकर भी वे अपने जीवन
में इसी तरह के हथकंडे अपनाते नज़र आते हैं। स्वाभाविक तौर पर यह एक गंभीर विवेचन का
मसला बनता है चूंकि यह धड़ल्ले से समाज में फैलता जा रहा है। इसका पार्श्व-प्रभाव
है, ज्ञान में कमी और संबंधित विषय में गहराई का अभाव।
वस्तुतः इस मामले में देश
की शिक्षा विभाग की ओर से पहल बेहद ज़रुरी है। विभिन्न विश्वविद्यालयों के
निर्धारित पाठ्यक्रम में बदलाव ज़रुरी है। हर दो साल के अनन्तर इस पाठ्यक्रम में बदलाव
होना चाहिए। इसके साथ ही नए-नए विषयों की ओर रुझान हो और विभिन्न वर्तमानकालिक
मुद्दों को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए। खासकर साहित्य के क्षेत्र में
विभिन्न नए उपन्यासों, कहानियों, कविताओं और आलोचनाओं को पाठ्यक्रम में फेर-बदल कर
रखा जाए। हालिया दौर की सूचनाओं से छात्र-छात्राओं को अवगत कराया जाए। पाश्चात्य
साहित्य में हो रहे परिवर्तन से उन्हें वाकिफ़ कराया जाए। इससे विद्यार्थियों के
पढ़ने की रुचि में इज़ाफा होगा और तथाकथित ढर्रे पर चली आ रही नोट्स पद्धति की
पढ़ाई का मौका उन्हें नहीं मिलेगा। चूंकि नए विषयों पर नोट्स मिलना मुश्किलदेह है,
अतः वे संबंधित विषयों से संबंधित विभिन्न पुस्तकों का अध्ययन करने में अपना मन
लगाएंगे। इसके लिए विभिन्न पुस्तकालयों में जाकर पढ़ने की आदत विकसित होगी। पुराने
घिसे-पीटे विषयों की विदाई होने पर सुधी और अध्ययनशील विद्यार्थियों को भी नए अनुसंधान
का मौका मिलेगा। पढ़ाई में उनकी रुचि बढ़ेगी और वे नए-नए विषयों पर आधारित
शोध-कार्यों की ओर मुखातिब होंगे।