Wednesday 25 April 2012

स्त्री-सौंदर्य में नाखून की महत्ता





हज़ारीप्रसाद द्विवेदी ने ‘नाखून क्यों बढ़ते हैं’ निबंध में बड़े सुंदर ढंग से नाखून से जुड़े तमाम मुद्दे उठाए हैं।किंतु इसका अध्ययन करते हुए सहज रुप से यह निष्कर्ष सामने आता है कि लम्बे नाखून मनुष्य की ‘भयंकर पाशविक वृत्ति एवं बर्बरता’ का जीवंत प्रतीक है।वहीं नाखून काटना मनुष्यता की निशानी है।किंतु ध्यान देने की बात है यह है कि आज इक्कीसवीं सदी में स्त्रियों के लिए लम्बे नाखून बर्बरता एवं पशु-सुलभ आचरण नहीं बल्कि सभ्यता एवं सौंदर्य का प्रतीक है।नाखून स्त्रियों के हाथों एवं पैरों के सौंदर्य को बढ़ाने और उसे सुसज्जित करने का एक बहुत बड़ा साधन है।इसी नाखून को बढ़ाने एवं उसे सुंदर आकृति देकर सजाने के ख्वाब लड़कियां छोटे से बुनती हैं। परिवारवालों या स्कूल की बाधा के कारण वे असफल रहतीं हैं किंतु बाधा-रहित होने या बड़े होने पर इस इच्छा को कार्य में तब्दील करतीं हैं।अंगुली की शक्ल के अनुसार नाखून को लम्बा करके वर्तुलाकार ,चंद्राकार , त्रिकोणाकार ,दंतुलाकार आदि रुप दे दिया जाता है।फिर तरह-तरह के रंगलेप(नेलपेंट) के द्वारा उसे सज्जित करने की अपार कोशिश जारी रहती है।इस परंपरा को शक्ति-प्रदान करने के लिए स्त्री-सौंदर्य परक मैगज़ीनों की बाढ़ लगी है जिसमें बाकायदा टिप्स आतें हैं कि क्या-क्या खाने और पीने से नाखून स्वस्थ रहेंगे।स्त्रियां उसे खूब खरीदतीं ,पढ़तीं एवं प्रयोग में लातीं हैं। मसलन् ताज़े गाजर का रस पीना नाखून के लिए फायदेमंद है,खासकर नाखूनों की मज़बूती के लिए।उसमें कैल्शीयम और फ़ौसफ़ोरस प्रचुर मात्रा में है।नींबू और (किसी निश्चित ब्रांड का) तेल नाखून पर मालिश की जाए तो वे चमकते रहेंगे आदि-आदि।

द्विवेदी जी के अनुसार नाखून एक समय वनमानुषों के लिए अस्त्र का काम करता था और इसलिए वह ज़रुरी था।किंतु आज विकसित अस्त्र-शस्त्र के आ जाने पर नाखून की ज़रुरत मिट चुकी है। अत: द्विवेदी जी नाखून को निर्लज्ज, बेहया और अपराधी कहते नज़र आतें हैं चूंकि काटने पर भी वह बढ़ता ही जा रहा है। किंतु यह गौरतलब है कि यदि ये निर्लज्ज, बेहया और अपराधी नाखून नहीं निकलते तो स्त्रियों की बड़ी क्षति होती।उनके सौंदर्य-सज्जा में बड़ा विघ्न पड़ जाता।जिस वस्तु को लेकर सजने-संवरने की इतनी धूम मची हैं,उसके अस्तिस्व का नष्ट होना काफ़ी दुखद होता।वस्तुत: द्विवेदी जी नाखून को पूर्णत: पुंसवादी नज़रिए से देखते हैं,ना कि स्त्रीवादी नज़रिए से।नाखून के प्रति स्त्रीवादी नज़रिया बेहद ज़रुरी है,खासकर आज के ज़माने में जब लम्बे नाखून को ट्रीम करना, फाइल करना और रंग-लेपन कर सुंदर शक्ल देना स्त्रियों के जीवन-व्यापार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।आज बाज़ार में तरह-तरह के रंगलेप उपलब्ध हैं और इसका एक अच्छा–खासा बाज़ार चल निकला है।विभिन्न तरह की क्वालिटियों(गुणों), रंगों और दामों के नेल-पौलिश आज उपलब्ध है।केवल नेल-पौलिश ही नहीं,नेल-पौलिश रीमूवर तथा विभिन्न नेल-शेपिंग टूल्स भी धड़ल्ले से प्रयोग में आ रहे हैं।उसके भी अनेकों ब्रांडस बाज़ार में उपलब्ध है।यहां तक कि नकली नाखूनों का भी प्रयोग हो रहा है जिसमें अनेक स्त्रियों की विशेष रुचि है।

ध्यान देने की बात है कि द्विवेदी जी वात्स्यायन के कामसूत्र का ज़िक्र तो करतें हैं जिसमें विभिन्न तरह के नाखून-सज्जा की बात कही गई है,किंतु फिर भी नाखूनों के प्रति विद्वेष भाव रखतें हैं तथा उसका संबंध पशु-वृत्ति से जोड़ देतें हैं।वे नाखून बढ़ने को सहजात वृत्ति मानतें हैं साथ ही पशुत्व का प्रमाण भी।इस पशुत्व को वे मनुष्य के भीतर के पशुत्व से जोड़तें हैं।यानि मनुष्य के बढ़ते नाखूनों के समान उसके हृदय में भी पाशविकता बढ़ रही है।यह सही है कि उन्होंने मनुष्य के हृदय की पाशविकताओं की ओर ध्यान खींचा है,किंतु नाखूनों के साथ इसका मेल बैठाना बड़ा अटपटा लगता है।बेचारे नाखून का इसमें क्या दोष ? उनके अनुसार नाखून चूंकि उपयोगी नहीं है,अत: उसके बढ़ने का यह सिलसिला एक दिन बंद हो जाएगा जैसे हमारी पूंछ झड़ चुकी है,ठीक वैसे ही।लेकिन दिलचस्प बात यह है कि द्विवेदी जी का यह पूवार्नुमान सही नहीं हुआ।नाखून बढ़ने का यह सिलसिला अभी तक बंद नहीं हुआ है और खासकर स्त्रियों के द्वारा इसकी प्रगति के नए रास्ते खोले जा रहे हैं।इसकी तरक्की के नए उपाए सुझाए जा रहे हैं।मैनिक्योर-पेडीक्योर जैसी प्रणालियों में भी नाखूनों की साफ-सफाई का खासा महत्व होता है।ऐसा भी देखा गया है कि नाखूनों को आकृति देने के क्रम में भूलवश आकृति ठीक न होने पर या नाखून के ही कट जाने पर स्त्रियां एक हफ्ते या उससे ज़्यादा समय तक दुखी एवं परेशान रहती हैं।

अत: स्पष्ट है कि नाखून के प्रति स्त्रीवादी नज़रिया अपनाने की ज़रुरत है।साथ ही यह समझने की बात है कि नाखून पाशविक-प्रवृति संपन्न नहीं बल्कि सौंदर्यात्मक गुण-संपन्न है।नाखून रखना बर्बरता नहीं वरन् स्त्री-फ़ैशन है।नाखून बेहया,निर्लज्ज और अपराधी नहीं सभ्यता का प्रतीक है और बड़े यत्न की चीज़ है और इसे संवारना स्त्री-सौंदर्य के अनुकूल है। आज लम्बे नाखून आधुनिक स्त्री-जीवन का एक ज़रुरी हिस्सा है।वह स्त्री-व्यक्तित्व से ज़ुड़ा है और स्त्री-धरोहर है।


पुस्तक और अवसरवाद

  मध्यवर्ग में एक अच्छा खासा वर्ग है जो पुस्तकों को 'शो-केस' में सजाकर अन्य को प्रदर्शित करना पसंद करते हैं। लेकिन अपने ही शो-केस से...