Friday 12 October 2012

राजनीति में स्त्री दिलचस्पी की कमी – सारदा बनर्जी


                                
आम तौर पर देखा गया है कि स्त्रियों में राजनीति के प्रति दिलचस्पी बेहद कम होती है। स्त्रियां राजनीति पर बात करना, चर्चा या आलोचना करना कतई पसंद नहीं करतीं। वे दूसरे अनेक रोचक विषयों पर जमकर बात करती हैं, आलोचना करती हैं पर राजनीति से कोसों दूर रहती हैं। उसे ‘बोगस’ विषय समझती हैं। बहुत कमसंख्यक स्त्रियां हैं जो देश में घट रहीं दैनंदिन राजनीतिक गतिविधियों में दिलचस्पी लेती हैं और विभिन्न घटनाओं की खबर और जानकारी रखती हैं। यह भी देखा गया है कि इन राजनीतिक खबर रखने वाली स्त्रियों को अन्य स्त्रियां आश्चर्य भरी नज़रों से निहारती हैं। उनका भाव ऐसा होता है कि ‘ये भी कोई सुनने, देखने और समझने की चीज़ है ?’ पेइंग-गेस्ट या हॉस्टल में रहने वाली लड़कियों में फिल्मी गानों ,फिल्मों, सीरियलों को देखने की होड़ लगी रहती है। इस बीच यदि कोई लड़की न्यूज़ सुनने की ज़िद कर बैठे तो वहां मौजूद दूसरी लड़कियां विरक्ती भाव से उसे देखती हैं। अगर राजनीतिक मुद्दों पर बातचीत छेड़ी जाए तो स्त्रियां उसे एवोएड करती हैं या कहती हैं, ‘पॉलिटिक्स बहुत खराब चीज़ है’ या कहती हैं, ‘कोई नेता या नेत्री क्या देश के लिए कुछ कर रहे/रही हैं ?’ बात कुछ हद तक सही है लेकिन सोचने की बात है कि क्या बिना देश की राजनीति को जाने, राजनीतिक गतिविधियों को समझे, राजनैतिक इतिहास की जानकारी रखे सिर्फ ऊपरी कमेंट पास करना ठीक है? क्या दैनंदिन राजनीतिक हरकतों की जानकारी रखे बगैर देश-सुधार या राज्य-सुधार पर विचार हो सकता है? क्या संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों की जानकारी के बिना संवैधानिक अधिकार अर्जित करना संभव है? कतई नहीं।
घर-घर में स्त्री-अत्याचार आज एक आम विषय है।यह भी सच है कि स्त्रियां इन अन्यायों, अत्याचारों और अपमानों को आए दिन घुट-घुट कर झेलती रहती हैं। एक ऐसा वर्ग है स्त्रियों का जो अपने संवैधानिक अधिकारों से एकदम अनजान है।उन्हें यह पता ही नहीं कि वे अपने अत्याचार का प्रतिरोध कर सकती है, उन्हें कानूनी सहायता मिल सकता है। इस अनजान रुख का बहुत बड़ा कारण है राजनीतिक ज्ञान का अभाव। दूसरी ओर जो स्त्रियां अपने संवैधानिक अधिकारों से वाकिफ़ हैं भी वे जीवन में कोई भी पुख्ता कदम उठाने से डरती हैं। स्त्रियों के मन में बैठे इस डर, इस अज्ञानता का बहुत बड़ा कारण उनके राजनीतिक ज्ञान या शिरकत की कमी है। लेकिन कभी किसी पुरुष को कोई राजनैतिक या संवैधानिक कदमों को उठाते हुए डरते नहीं देखा जाता क्योंकि पुरुष जमकर देश की राजनीतिक गतिविधियों में बराबर दिलचस्पी लेते रहे हैं, हिस्सा लेते रहे हैं।
स्त्री-अपदस्थीकरण का एक बहुत बड़ा कारण स्त्रियों का राजनीति के प्रति रुचि का अभाव है। यह कटु सत्य है कि भारत में अधिकतर स्त्रियां चुनाव के समय अपने मन-पसंद उम्मीदवार को वोट नहीं देतीं। वो अपने पति या पिता द्वारा कहे(समझाए) गए उम्मीदवार को ही वोट दे आती हैं। कारण अधिकांश स्त्रियां राजनीति सुनती ही नहीं, ना फ़ोलो करती हैं। उन्हें पता ही नहीं होता कि किसे वोट दिया जाए। वोट से तुरंत पहले अपने पुंस घरवालों से सीख-समझकर कुछ ज्ञान संग्रह करती हैं और उसी आधार पर अपना वोट देना सार्थक समझती हैं। कमसंख्यक स्त्रियां हैं जो राजनीति में वास्तविक रुचि लेती हैं और अपने स्वायत्त फैसले रखते हुए उसी आधार पर वोट देती हैं। लेकिन स्त्री-मुक्ति के लिए स्त्रियों का राजनीति में दिलचस्पी लेना और राजनीति में शिरकत करना दोनों बेहद ज़रुरी है।
यह देखा गया है कि ऑफिस में या परिवार में जब पुरुष-समूह राजनीतिक विषयों पर चर्चा करने लगते हैं तो स्त्रियां अचानक चुप्पी साध लेती हैं या न्यूज़ चैनलों में राजनीतिक खबरों के आते ही स्त्रियां भाग खड़ी होती हैं। यह जो उपेक्षा का भाव है राजनीति के प्रति यही खतरनाक है।यही वह जगह है जहां स्त्रियां कमज़ोर हो जाती हैं और पुरुष स्त्रियों को मूर्ख या बुद्धिहीन समझने लग जाते हैं। साथ ही स्त्रियों को राजनीतिक-शिक्षा देते-देते स्त्रियों पर अपने पुंस आधिपत्य का विस्तार करने लगते हैं।
स्त्रियों की राजनीति में कम दिलचस्पी के कारण ही देश में स्त्रियों की राजनीति में शिरकत की भी कमी है। भारत में जिस गति में पुरुष राजनीति में शिरकत करते हैं,राजनीतिक गतिविधियों में हिस्सा लेते हैं उसी अनुपात में स्त्रियां नहीं लेतीं। इसका एक कारण यह भी है कि स्त्रियों के स्वायत्त निर्णय लेने में परिवारवालों की ओर से भी पाबंदी होती है। भारत में बड़ी स्त्री-नेत्रियाँ हाथ में गिनी जा सकती हैं, जबकि पुरुषों की एक लंबी फौज राजनीति से जुड़ा है।
स्त्री अस्मिता और स्त्री-मुक्ति के लिए यह बेहद ज़रुरी है कि स्त्रियां देश के राजनीतिक गतिविधियों में रुचि लें। उसे जानें, समझें और राजनीति में शिरकत करें। राजनीतिक विषयों पर अपने विचार रखें और उन विषयों पर कायदे से तर्क करें। इससे स्त्रियों में आत्मविश्वास का संचार होगा, उन्हें पुंस दासता से मुक्ति मिलेगी।


पुस्तक और अवसरवाद

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