स्त्रियों का एक
बड़ा वर्ग है जिनका धार्मिक रुढ़ियों और आडम्बरों से बहुत आत्मीयता का संबंध है।
खासकर बुज़ुर्ग महिलाओं का विभिन्न तरह के धार्मिक पाखंडों से रागात्मक संबंध आज
भी बना हुआ है। इन धार्मिक छल-कपटों में बेइंतिहा भरोसा रखने वाली स्त्रियों को
ज़रुर ‘ओ माइ गॉड’ फ़िल्म देखनी चाहिए। ‘ओ माइ गॉड’ विभिन्न किस्म के धार्मिक
पाखंडों पर चोट करने वाली एक दिलचस्प फ़िल्म है। ये मठों, गिरजाघरों, मस्जिदों में
संतो, गुरुओं, बाबाओं, मैय्याओं, मुल्लाओं, पादरियों द्वारा धर्म के नाम पर किए
जाने वाले ठगई और धोखाधड़ी का पर्दाफाश करनी वाली एक बढ़िया फ़िल्म है। बिज़नेस के
लिए कहे जाने वाले तरह-तरह के झूठ और तमाम किस्म की फरेबबाज़ियों का खुलासा यह
फ़िल्म है। हर एक स्त्री को चाहिए कि वे इस फ़िल्म से रुबरु हो और धार्मिक
अंधविश्वासों पर चोट करने वाली इसकी स्पिरिट को पकड़े।
इस फिल्म में एक जगह
दिखाया जाता है कि किस तरह मूर्ति बेचने के लिए दुकारदारों के द्वारा मनगढ़ंत
मिथ्या का सहारा लिया जा रहा है। गोकुल, मथुरा आदि से प्राप्त मूर्तियां कहकर
लोगों को अधिकाधिक दरों में बेचा जा रहा है। यानी एक शब्द में ठगई की जा रही है।
इसी तरह धार्मिक प्रवचन सुनाने वाले ढोंगी बाबाओं का धर्म के नाम पर पैसा कमाने और
ऐश करने की वास्तविकता को उजागर किया गया है। मज़ेदार है कि धर्म के नाम पर एक
बुराई वे सुन नहीं सकते लेकिन धर्म के नाम पर निरीह जनता को ठगते हैं। खुद को ईश्वर
का दूत कहकर आम जनता के पैसे लूटने में उन्हें कोई शर्म नहीं। असल में इन धार्मिक ढकोसलों
का शिकार खासकर स्त्रियां होती हैं, इसलिए उन्हें यह मूवी ज़रुर देखनी चाहिए और
धर्म के नाम पर फैलाए जा रहे पाखंडों से मुक्त होना चाहिए।
इस फ़िल्म में एक और
दिलचस्प बात यह है कि ये मूवी हमें अवतारिज़्म की कपोलकल्पना से मुक्त होकर सोचने
पर मजबूर करती है। इन जेनरल अवतार के कंसेप्ट के साथ धोती और लंबे बाल गुँथे हुए
हैं। लेकिन इस फ़िल्म में अक्षय कुमार पैंट-शर्ट और छोटे बाल वाले अवतार के रुप में
सामने आए हैं। इस माडर्न अवतार का नया ड्रेस और नया लहज़ा है। ये नया अवतार
सुदर्शन चक्र की जगह की-रिंग घूमाते हैं। वैसे अपनी प्यारी बांसुरी और मक्खन को
छोड़ नहीं पाए हैं। लेकिन देखा जाए तो कृष्ण का ये नया अंदाज़ और नया फ़ॉर्म अपने
आप में जुदा है। वैसे ये फ़ॉर्म उन लोगों को अपील नहीं करेगा जो परंपरागत और पुराने
फ्रेमवर्क में ही अवतार को कैद कर कृष्ण को बंधे-बंधाए पैटर्न में ही एक्सेप्ट
करना चाहते हैं। लेकिन धर्म को रुढ़िमुक्त करने के लिए और प्रकृत धर्म की पहचान के
लिए ये नया रुप कारगर हथियार है।
धर्म की गलत और रुढ़
समझ पर यह फ़िल्म करारा व्यंग्य करती है। आज धर्म कुसंस्कार और अंधविश्वास का रुप
ले चुका है। वह मुक्तता और उदारता का पर्याय नहीं रह गया है। धर्म हमें मानवीयता की
ओर ले जाता है, सहिष्णुता की ओर ले जाता है। मन को लिबरल और उच्च चिंतन संपन्न
बनाता है। धर्म हमें सह-बंधुत्व, सह-भातृत्व, धर्म-निरपेक्ष विचारों से लैस करता
है। लेकिन धर्म की सही संकल्पना आज गायब हो गई है और सामंती मानसिकता उस पर हावी
हो गई है। यह बहुत ज़रुरी है कि धर्म का सही रुप हमारे सामने आए और गलत विचार दूर
हों। तमाम तरह की दकियानूसी विचारों से घिरे धर्म को अपनी सही शक्ल लेना होगा।
स्त्रियों में बड़ी
मात्रा में धार्मिक रुढ़ियां घर कर गई हैं। कायदे से स्त्रियों को इन पाखंडों से
और पाखंडी बाबाओं से निजात पाना होगा। वास्तविक धर्म की पहचान करनी होगी जिससे
उनमें वैज्ञानिक सचेतनता डेवलप हों। वे धर्म के मूल कंसेप्ट्स को पकड़ पाएं और
अपने जीवन में उसे लागू करें। साथ ही अवतार को पुराने फ्रेमवर्क से निकालकर नए
फ़ॉर्म में ग्रहण करना होगा। गीता, कुरान, बाइबल जैसे धार्मिक ग्रंथों के मूल
मेसेज को आत्मसात करना होगा। उसे रुढ़ियों में घेरकर उससे लटकने से कोई फ़ायदा
नहीं। धार्मिक फंडामेंटालिज़्म केवल सामाजिक विभाजन करता है। इसलिए धर्म और
धार्मिकता के भेद को समझना होगा।
‘ओ माइ गॉड’ एक
विचारवान और रुढ़िमुक्त फ़िल्म है। आज जब चारों ओर धार्मिक पाखंडों का दुर्धष खेल
चल रहा है जब इन पाखंडों का पर्दाफाश कर उनकी धज्जियां उड़ाने वाली एक फ़िल्म का
आना सराहनीय कदम है। बेशक सभी स्त्रियों को यह फ़िल्म देखनी चाहिए क्योंकि ये मसला
स्त्री-मुक्ति से भी जुड़ा हुआ है।
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