ऐसी वारदातें जो स्त्री के देह से
होकर उसके मन तक को नारकीय यंत्रणा का नृशंस शिकार बना दे, देश के लिए शर्म हैं और
ऐसे लोग जो इस तरह की गुनाहों के गुनहगार होते हैं , वे देश और समाज से बहिष्कृत
किए जाने के योग्य हैं। इस संदर्भ में उल्लेखनीय है तेजाब हमले की शिकार झारखंड के
धनबाद की सत्रह साल की सोनाली मुखर्जी के साथ हुआ वारदात। झारखंड की इस युवती को उसके
पड़ोस के तीन लड़के परेशान कर रहे थे। जब उसने इन तीनों के गलत व्यवहार का विरोध
किया, तो उन तीनों युवकों ने रात में जब सोनाली छत पर अपने
परिवारवालों के साथ सोई थी, उसके चेहरे पर तेजाब फेंक कर उसे जला दिया। इस हमले के बाद सोनाली की सुनने, देखने और बोलने की क्षमता खत्म हो गई, चेहरा बिगड़ गया। इस घाव के भरने के
लिए पुश्तैनी जमीन से लेकर मां के जेवरात तक बेचा गया फिर भी
इलाज में पैसे कम पड़ गए। अब तक कुल 22 छोटी-बड़ी शल्यचिकित्साएं हो चुकी हैं, पर ज़ख्म अब
तक पूरा नहीं भरा।
चौंकाने वाली बात है कि सोनाली के इन तीनों गुनहगारों
तापस मित्र, संजय पासवान और ब्रह्मदेव हाजरा को अदालत ने नौ साल की सज़ा तो सुनाई लेकिन
तीन साल सज़ा काटने के बाद वे जेल से ज़मानत में रिहा होकर आज सरे आम समाज में घूम
रहे हैं। दोषियों को दण्ड देने के लिए मंत्रियों के दरवाज़े खटखटाकर सोनाली
थक चुकी हैं लेकिन किसी ने उसकी मदद नहीं की। यह घटना
सार्वजनिक तौर पर तब सामने आया जब सोनाली ने सरकार से यूथेनेशिया यानि इच्छामृत्यु
की मांग की। नैशनल कैडेट कोर की वर्दी पहनकर देश की सेवा के सपने देखने वाली सोनाली
के सपनों को चकनाचूर करने वाले इन अपराधियों को कड़ी से कड़ी सज़ा
होनी चाहिए थी लेकिन वास्तविकता कुछ और है। स्वाभाविक तौर पर यहां सवालिया निशान लगता है कि आज हमारे समाज में स्त्रियां कितनी
सुरक्षित हैं? अगर ऐसे अपराधी संगीन अपराध करके भी छुट्टे घूमेंगे तो क्या भविष्य
में ऐसे भयानक हादसे दोबारा नहीं घट सकते ? यहां यह सवाल भी उठ खड़ा होता है कि
क्या स्त्रियों पर हुए अमानवीय हमले समाज की नज़रों में कोई मायने नहीं रखता कि
उनके अपराधी आज भी खुले घूम रहे हैं ?
इस घटना को केंद्र
में रखकर 25 नवंबर, रात 8.30 बजे सोनी टी.वी. पर ‘कौन
बनेगा
करोड़पति 6’ (केबीसी)
की विशेष कड़ी में सोनाली को अमिताभ
बच्चन के साथ हॉट सीट के लिए बुलाया गया जिनके साथ अभिनेत्री लारा दत्ता ने सहयोग
दिया। इस शो में सोनाली के ऑपरेशन के लिए उसे मदद करने के उद्देश्य से खेल के
ज़रिए उसे एक 25 लाख की राशी भेंट की गई जो एक ज़िम्मेदार कदम था। इसे एक
प्रगतिशील प्रसारण कहा जा सकता है। साथ ही सोनाली के साथ हुए इस वारदात से अनजान
लोगों को भी ज्ञात हुआ कि किस तरह समाज में असामाजिक तत्व सिर उठाया हुआ है और स्त्रियों
के लिए एक भयानक अभिशाप बना हुआ है। अमिताभ बच्चन ने सोनाली से यह सवाल पूछा कि इन
सबको सहन करने की शक्ति सोनाली को कहां से मिली और सोनाली के पिता से पूछा कि जब
यह हादसा उनकी बेटी के साथ हुआ तो उन पर क्या गुज़री या उन्हें क्या फ़ील हुआ।
कायदे से जब हम किसी पीड़िता और यंत्रणा-भोगती महिला और उसके परिवारवालों से बात
करें या सवाल पूछें तो हमें इन सवालों से बचना चाहिए। वजह यह है कि जब विपत्ति आती
है तो उसे सहने और डटकर सामना करने के अलावा इंसान के पास कोई चारा नहीं होता और
दूसरी बात अपनी बेटी के खूबसूरत चेहरे को पल भर में बिगड़ते देख किसी भी पिता को
दर्द और तकलीफ़ के अलावा कुछ हो नहीं सकता। जायज़ है इन सवालों को पूछने का अर्थ
पुराने दर्द को कुरेदकर जनसमक्ष उसे नए रुप में उभारना है।
चेहरा
हर एक इंसान की प्राथमिक पहचान है। हमारी और खासकर एक स्त्री की अस्मिता और
अस्तित्व का पहला परिचय उसका चेहरा है। सोचा जा सकता है कि कितना कठिन और कष्टकर
है वो जीवन जो पल भर में एक खूबसूरत चेहरे को बदसूरत चेहरे में तब्दील होते झेल
रहा हो, उसके दर्द और पीड़ा को महसूस कर रहा हो। आँखों से देखने वाली दुनिया को आज
छूकर फ़ील करना पड़ रहा हो। कहने के लिए इस हादसे ने केवल स्त्री-चेहरे को जलाया
है लेकिन इसने स्त्री-तन के साथ-साथ स्त्री-मन और स्त्री आत्मा तक को जला दिया है।
साथ ही उस परिवार को भी जलाया जो दिन-रात जोड़कर पैसे जुगाड़ करने की अथाह कोशिश
में जुटा है, अपनी बेटी के खोए हुए चेहरे को फिर से सुधारने में लगा है। यह जलन
पूरे समाज के दिल को जलाता है और समाज के सामने यह सवाल फेंकता है कि क्या स्त्री
वजूद आज वाकई खतरे में है? स्त्रियों के साथ अत्याचार तो आम है जो सदियों से भोगा
हुआ एक ज्वलंत सच है। लेकिन सवाल यह है कि क्या स्त्रियों के लिए अपनी अस्मिता के
साथ सड़क चलना भी जोख़िम भरा है? क्या अपने अपमान का विरोध करना, अपने साथ होते
छेड़छाड़ का विरोध करना अपने जीवन में ज़ख्म को न्यौता देना है? जीवित-मौत को
बुलावा देना है?
सोनाली
के साथ हुए इस वारदात की जितनी भर्त्सना की जाए वह कम है। यहां सवाल यह भी उठता है
कि भारत सरकार ने अभी तक
तेजाब पीड़ितों के लिए कोई सशक्त कानून क्यों नहीं बनाया है जिसके तहत ऐसे पीड़ितों
को मुफ़्त इलाज की सुविधा मुहैया कराई जाए और इसके अपराधियों को कड़ी से कड़ी सज़ा
दी जाए ? साथ ही इस तरह के अपराध ‘नॉन-बेलेबेल’ होने चाहिए। स्त्रियों के खिलाफ़
चल रही इन हिंसाओं को रोकने के लिए यह बेहद ज़रुरी है कि समाज और देश सक्रिय हो। हमारी
न्याय-व्यवस्था सक्रिय भूमिका निभाए। हम यह अपेक्षा ही कर सकते हैं कि सोनाली के
गुनहगारों को जल्द से जल्द कड़ी सज़ा मिले। नौ साल की जद्दोजहद से सोनाली और उसके
परिवारवालों को जल्द मुक्ति मिले। साथ ही स्त्री आज़ादी में हस्तक्षेप और
स्त्री-ज़िंदगी में दखलंदाज़ी करने वाले इन असामाजिक पुंसवादी तत्वों को समाज
बहिष्कृत करें, इन्हें सज़ा दें।
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