आज अधिकतर भारतीय स्त्रियां प्रचलित भारतीय वस्त्रों की जगह जीन्स को वरीयता दे रही हैं। इसकी वजह है मार्केट में जीन्स का व्यापक तौर पर उपलब्ध होना और जीन्स का कम्फर्ट-लेबल । इसके अतिरिक्त जीन्स स्टाइलिश ड्रेस के रुप में भी माना जाता है। साथ ही यह आधुनिकता का भी परिचायक है। यही वजह है कि आज धड़ल्ले से जीन्स मार्केट में बिक भी रहे हैं और आधुनिक पीढ़ी की स्त्रियां इसे खूब पहन भी रही हैं। किंतु सोचने और विचारने की बात है कि क्या आधुनिक कपड़ों से ही आधुनिकता की पहचान होती है ? क्या स्त्रियों के लिए आधुनिक कपड़ों के साथ-साथ आधुनिक विचार भी ज़रुरी नहीं ? देखा जाए तो आधुनिक कपड़ों और आधुनिक विचारों के साथ-साथ आधुनिक व्यवहार और आधुनिक आचरण भी आज की आधुनिकाओं के लिए बेहद ज़रुरी है। अगर हकीकत की पड़ताल की जाए तो ज़्यादातर मामलों में आज की आधुनिक लड़कियां केवल कपड़ों से ही आधुनिक होती हैं। आज कॉलेज या विश्वविद्यालय की लड़कियां जीन्स-टॉप जैसे आधुनिक वस्त्रों में दिखती तो हैं लेकिन उनकी मानसिकता में ट्रैडिशनल मानसिकता से कोई ज़रुरी फेर-बदल दिखाई नहीं देता। यानि उदार या ओपेन विचारों का उनमें सर्वथा अभाव दिखाई देता है। दूसरी ओर उनसे बात करते ही उनके दिमाग में पैठी पिछड़ी मानसिकता या पुंसवादी मानसिकता का ज़बरदस्त एफ़ेक्ट दिखाई देता है। यही वह मुद्दा है जिस पर विचार करने की ज़रुरत है कि आख़िर क्या कारण है आधुनिक कपड़ों ने तो हम स्त्रियों पर हमला बोल दिया लेकिन आधुनिक विचारों ने नहीं।
देखा जाए तो पुंस
समाज ने स्त्रियों पर आधुनिक वस्त्रों का लबादा ओढ़कर उनमें आधुनिक होने का विभ्रम
पैदा किया है। लेकिन आधुनिक सोच को बढ़ावा देने में पुंस-समाज की भूमिका प्राय: ज़ीरो है। भारतीय समाज में आज भी स्त्री
अधिकारहीन है, उसे किसी भी मामले में स्व-निर्णय का हक नहीं है। परिवार में चाहे
पुरुष हो चाहे स्त्री सबके जीवन का निर्णयक-कर्ता वही पुरुष है। कारण यह कि
स्त्रियों को फैसले लेने या अपने विचार को रखने का स्पेस ही नहीं दिया जाता। जीन्स-टॉप
में फ़िट आज की अधिकतर स्त्रियां यह सोचती हैं कि वे तो आधुनिका हैं लेकिन उनकी यह
सोच दरअसल गलत है। आज की अधिकतर(सभी नहीं) स्त्रियां आधुनिक कपड़ों में लिपटी
पिछड़ी विचारों से लैस स्त्रियां है जिन्हें अपने साथ घट रही हर एक पल की सूचना
अपने परिवारवालों को देनी पड़ती है, पुरुष घरवालों की मर्ज़ी के अनुसार चलना पड़ता
है। वे अपने पसंदीदा फील्ड में नहीं पढ़ सकतीं, पसंदीदा लड़के से शादी नहीं कर
सकतीं, पसंदीदा जिंदगी नहीं जी सकतीं। तो आखिरकार उनके जीवन में आधुनिकता है कहां ?
मेरे कहने का अर्थ
यह नहीं कि स्त्रियां जीन्स पहनना छोड़ दें और भारतीय वस्त्र पहनकर ही आधुनिक
विचारों से संपृक्त हों। बल्कि यह कि स्त्रियों की यह मौलिक अभिरुचि हो कि वह क्या
पहने क्या नहीं। साथ ही उनके विचार भी मौलिक और आधुनिक हो, ना कि पराए या पुराने।
सर्वप्रथम तो स्त्री विचारों पर पुंस आधिपत्य बिल्कुल न हो तो दूसरी ओर स्त्रियां
खुद अपने विचारों में आधुनिकता का स्वयं समावेश करें। वे अपनी अस्मिता के प्रति
सचेत हों, अपनी दृष्टि से अपने सौंदर्य को परखें और अपनी रुचिबोध से परिचालित हों
ना कि पुरुषों के। पुरुषों की इच्छानुसार स्वयं को ढालने की कोशिश न करें। अपने
लिए अपने आप को ब्यूटीफाई करें ना कि पुरुषों की नज़रों में पर्फ़ेक्ट होने के
लिए। अपनी प्रतिभाओं को पहचानकर जीवन में सही कदम बढ़ाएं ना कि पुंस घरवालों के
चुने हुए रास्ते पर चलें। जब तक इन आधुनिक मुद्दों में हेर-फेर नहीं होगा तब तक
स्त्री जीन्स पहनकर भी आधुनिका नहीं हो सकती यानि स्त्री मेंटली पुरुष आधिपत्य में
ही सिमटी रह जाएगी और उन्हीं के द्वारा परिचालित होती रहेंगी।
इक्कीसवीं सदी की
स्त्रियों के लिए यह ज़रुरी हो गया है कि कपड़ों के साथ-साथ उनके विचारों में भी आवश्यक
बदलाव आए क्योंकि जब तक वे आधुनिक विचारों से लैस नहीं होंगी तब तक अपने संवैधानिक
अधिकारों और समाज व परिवार में व्याप्त पुंसवादी रवैये के प्रति जागरुक नहीं होंगी।
पितृसत्ताक मानसिकता से मुक्ति के लिए स्त्रियों को सचेत होना पड़ेगा। स्त्री-सचेतनता
के लिए आधुनिक विचारों को दिल खोल कर स्वागत करना होगा। उदार मानसिकता को अपनाना
होगा जिससे वे स्वच्छंद हो सकें, मुक्त हो सकें। मॉडर्न एटीट्यूड का विकास कर उसे
अपने जीवन में लागू करना होगा।
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